फिर से अपने खेत में। सरसों ने पीताम्बर पाया, फिर से अपने खेत में।। -- हरे-भरे हैं खेत-बाग-वन, पौधों पर छाया है यौवन, झड़बेरी ने 'रूप' दिखाया, फिर से अपने खेत में।। -- नये पात पेड़ों पर आये, टेसू ने भी फूल खिलाये, भँवरा गुन-गुन करता आया, फिर से अपने खेत में।। -- धानी-धानी सजी धरा है, माटी का कण-कण निखरा है, मोहक रूप बसन्ती छाया, फिर से अपने खेत में।। -- पर्वत कितना अमल-धवल है, गंगा की धारा निर्मल है, कुदरत ने सिंगार सजाया, फिर से अपने खेत में।। -- |
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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021
गीत "मोहक रूप बसन्ती छाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
"कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
प्रकृति ने अपने सुंदर रंगों से पूरी धरा को आच्छादित कर दिया है, सुंदर सृजन..
जवाब देंहटाएंप्राकृति के सबसे अच्छे बसंत को बाखूबी शब्दों में उतारा है शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंमेरा नमस्कार ...
बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन गीत । प्रकृति के सौंदर्य को गीत में उतार दिया है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबसंत पर सुंदर सरस गीत बसंती रंगों से सराबोर।
जवाब देंहटाएंसादर।
धानी-धानी सजी धरा है,
जवाब देंहटाएंमाटी का कण-कण निखरा है,
मोहक रूप बसन्ती छाया,
फिर से अपने खेत में।।
अप्रतिम सृजन...
साधुवाद आदरणीय 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुन्दर बासंती छटा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं