जब खारे आँसू आते हैं। अन्तस में उपजी पीड़ा की, पूरी कथा सुनाते हैं।। -- धीर-वीर-गम्भीर इन्हें, चतुराई से पी लेते हैं, राज़ दबाकर सीने में, अपने लब को सी लेते हैं, पीड़ा को उपहार समझ, चुपचाप पीर सह जाते हैं। अन्तस में उपजी पीड़ा की, पूरी कथा सुनाते हैं।। -- चंचल मन है, भोलातन है, नयन बहुत मतवाले हैं, देख रहे दुनियादारी को, इनके खेल निराले हैं, उनसे नेह हमेशा होता, जो आँखों को भाते हैं। अन्तस में उपजी पीड़ा की, पूरी कथा सुनाते हैं।। -- मन के नभ पर जब, बादल की सूरत गहराती है, आँखों के दर्पण में, उसकी मूरत आ जाती है, जैसी होती मन की हालत, वैसा “रूप” दिखाते हैं। अन्तस में उपजी पीड़ा की, पूरी कथा सुनाते हैं।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021
गीत "आँसू की कथा-व्यथा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
अश्रुओं के स्वभाव का यथार्थ चित्रण है इस मर्मस्पर्शी गीत में । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएं--
जवाब देंहटाएंधीर-वीर-गम्भीर इन्हें,
चतुराई से पी लेते हैं,
राज़ दबाकर सीने में,
अपने लब को सी लेते हैं,
पीड़ा को उपहार समझ,
चुपचाप पीर सह जाते हैं।
अन्तस में उपजी पीड़ा की,
पूरी कथा सुनाते हैं।।..अंतर्मन तक पहुंचती एवं सत्य से रुबरू कराती सुन्दर रचना..आपको मेरा नमन..
मन के नभ पर जब,
जवाब देंहटाएंबादल की सूरत गहराती है,
आँखों के दर्पण में,
उसकी मूरत आ जाती है,
जैसी होती मन की हालत,
वैसा “रूप” दिखाते हैं।
अन्तस में उपजी पीड़ा की,
पूरी कथा सुनाते हैं।।
आदरणीय, इसे पढ़ कर जयशंकर प्रसाद के "आंसू" काव्यसंग्रह की याद ताज़ा हो गई... आपने नई दृष्टि से, नये उपमानों से आंसू को गीत में जिस तरह सृजित किया है वह श्लाघनीय है।
अपने नाम "रूप" का प्रयोग भी बहुत स्वाभाविक और सुंदर ढंग से किया है आपने ...
बहुत शुभकामनाएं,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
अन्तस पीड़ा का बाहर निकलने का मार्ग ऑंखें ही होती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंआँसू तेजाब जैसे
जवाब देंहटाएंरहीम कवि ने भी कहा है -जाहि निकारो गेह से कस न भेद कहि देइ.
जवाब देंहटाएंमन की पीड़ा को आँसू सहज ही अभिव्यक्त कर देते हैं ।सटीक ।
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, मन के भाव इतनी खूबसूरती से उड़ेल दिये आपने वाह...चंचल मन है, भोलातन है,
जवाब देंहटाएंनयन बहुत मतवाले हैं,
देख रहे दुनियादारी को,
इनके खेल निराले हैं,
उनसे नेह हमेशा होता,
जो आँखों को भाते हैं।
अन्तस में उपजी पीड़ा की,
पूरी कथा सुनाते हैं।।...बहुत खूब
आदरणीय, आंसू सचमुच मन की जुबान होते हैं। अप्रतिम रचना!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन .
जवाब देंहटाएं