बौराये हैं पेड़ भी, पाकर कोमल फूल।। -- टेसू अंगारा हुआ, खेत उगलते गन्ध। सपने सिन्दूरी हुए, देख नये सम्बन्ध।। -- पंछी कलरव कर रहे, देख बसन्ती रूप। शाखा पर बैठे हुए, सेंक रहे हैं धूप।। -- सरसों फूली खेत में, गेहूँ करे किलोल। कानों में पड़ने लगे, कोयलिया के बोल।। -- लहराते हैं पेड़ सब, पहन नये परिधान। रवि की फसलें देखकर, खुश हो रहे किसान।। -- कागा भी खुजला रहा, अपनी दोनों पाँख। प्रेमी मिलकर बाग में, लड़ा रहे हैं आँख।। -- मास फरवरी चल रहा, प्रेमदिवस नजदीक। कल तक लगते गैर जो, वो हो गये रफीक।। |
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बुधवार, 10 फ़रवरी 2021
दोहे "देख बसन्ती रूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंप्रकृति के करीब ले जाती रचना..बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबसंत ऋतु का बहुत सुन्दर मनोहारी चित्रण..
जवाब देंहटाएंकागा भी खुजला रहा, अपनी दोनों पाँख।
जवाब देंहटाएंप्रेमी मिलकर बाग में, लड़ा रहे हैं आँख।।
वाह!!
सुंदर रचना। सादर।
पंछी कलरव कर रहे, देख बसन्ती रूप।
जवाब देंहटाएंशाखा पर बैठे हुए, सेंक रहे हैं धूप।।
दोहों के माध्यम से बहुत सुंदर प्रकृति चित्रण, साधुवाद 🙏
सादर नमन आपको 🙏