प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।। -- छाया हुआ रूप का ही नशा है, जवानी में उन्माद ही तो बसा है, दिखावे ने अपना शिकंजा कसा है, प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है? प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।। -- बिना स्नेह के दीप कैसे जलेगा? बिना प्यार के कैसे पादप पलेगा? कभी वासना से न जीवन चलेगा, प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है? प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।। -- दिखावा हटाओ, जियो ज़िन्दगी को, दिलों से मिटाओ, मलिन-गन्दगी को, अगर प्यार है तो, करो बन्दगी को, प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है? प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।। -- |
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सुन्दर संदेश पूर्ण रचना..हमेशा की तरह..
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
"प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
दिखावा हटाओ, जियो ज़िन्दगी को,
जवाब देंहटाएंदिलों से मिटाओ, मलिन-गन्दगी को,
अगर प्यार है तो, करो बन्दगी को,
प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?
प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।।
सचमुच जहां दिखावा हो वहां प्रेम नहीं होता और जहां प्रेम होता है वहां दिखावा नहीं होता। सहजता ही प्रेम की पहली मांग होती है। बहुत सुंदर गीत है आदरणीय, साधुवाद 🙏
शुभकामनाओं सहित,
सादर
डॉ. वर्षा सिंह
प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?
जवाब देंहटाएंप्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।।
पाश्चात्य संस्कृति की देन - यह दिवस, वह दिवस... ना जाने कौन कौन से दिवस ! हिन्दू संस्कृति में तो एक बार ही प्रतिज्ञा दिवस आता है। उसी प्रतिज्ञा को दोनों निभाए चले जाते हैं, हर हाल में, जीवन भर !!!
हितकारी संदेश!
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश से परिपूर्ण सुंदर रचना आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंप्रणाम।
सादर।
शानदार सृजन..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम..
सारगर्भित तथ्य समेटे हर पंक्ति अपने आप में।
जवाब देंहटाएंप्रेम एक अंतरंग भाव है उसकी पराकाष्ठा इन बाहरी आडंबरों का कोई स्थान नहीं होता ।
सुंदर सत्य।
प्रणाम शास्त्री जी, क्या खूब लिखा है कि -
जवाब देंहटाएंबिना स्नेह के दीप कैसे जलेगा?
बिना प्यार के कैसे पादप पलेगा?
कभी वासना से न जीवन चलेगा,
प्रतिज्ञादिवस में प्रतिज्ञा कहाँ है?
प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है।।...निश्चित ही ये आज की सीख है