-- बात-बात पर हो रही, आपस में तकरार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (१) बेकारी में भा रहा, सबको आज विदेश। खुदगर्ज़ी में खो गये, ऋषियों के सन्देश।। कर्णधार में है नहीं, बाकी बचा जमीर। भारत माँ के जिगर में, घोंप रहा शमशीर।। आज देश में सब जगह, फैला भ्रष्टाचार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (२) आपाधापी की यहाँ, भड़क रही है आग। पुत्रों के मन में नहीं, माता का अनुराग।। बड़ी मछलियाँ खा रहीं, छोटी-छोटी मीन। देशनियन्ता पर रहा, अब कुछ नहीं यकीन।। छल-बल की पतवार से, कैसे होंगे पार, भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (३) ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज। लूट रहे हैं चमन को, माली ही खुद आज।। खूनी पंजा देखकर, सहमे हुए कपोत। सूरज अपने को कहें, ये छोटे खद्योत।। मन को अब भाती नहीं, वीणा की झंकार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (४) जब हो सबका साथ तो, आता तभी विकास। महँगाई के दौर में, टूट रही है आस।। कोरोना ने हर लिया, जीवन का सुख-चैन। समय पुराना खोजते, लोगों के अब नैन।। आशाएँ दम तोड़ती, फीके हैं त्यौहार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (५) कुनबेदारी ने हरा, लोकतन्त्र का 'रूप'। आँगन में आती नहीं, सुखद गुनगुनी धूप।। दल-दल के अब ताल में, पसरा गया है पंक। अब वो ही राजा हुए, कल तक थे जो रंक।। जन-जन का हो उन्नयन, मन में यही विचार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। -- |
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
21/02/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी विचारणीय दोहा गीत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२१-०२-२०२१) को 'दो घरों की चिराग होती हैं बेटियाँ' (चर्चा अंक- ३९८४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बेकारी में भा रहा, सबको आज विदेश।
जवाब देंहटाएंखुदगर्ज़ी में खो गये, ऋषियों के सन्देश।।
कर्णधार में है नहीं, बाकी बचा जमीर।
भारत माँ के जिगर में, घोंप रहा शमशीर।।
यथार्थ को प्रतिबिंबित करता गीत...।
नमन आदरणीय 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
देश,परिवार तथा समाज के प्रति हर इंसान के कुछ महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व होते हैं, परंतु जब आँखों के सामने उनका क्षरण होता है, तो स्वाभाविक रूप से मन आहत होता है ..यथार्थपूर्ण सार्थक दोहे..
जवाब देंहटाएंपारिवारिक और सामाजिक परिवेश पर सटीक लिखा है ।विचारणीय
जवाब देंहटाएंसटीक सुन्दर विचारणीय दोहे|
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सुंदर सृजन सर,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंसीख देते सुंदर दोहे ।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर खूब कलम चलती है आपकी आदरणीय।
सुखद।