बाँटों महक गुलाब सी, सबको आज ज़नाब।। -- प्रणय-प्रीत के प्रथम दिन, बाँट रहा मुस्कान। सह कर पीर गुलाब-गुल, कभी न होता म्लान।। -- आता है मधुमास में, प्रणय-प्रीत सप्ताह। चाह अगर हो हृदय में, मिल जाती है राह।। -- काँटों में पलता हुआ, हँसता-खिलता रोज। बाँट रहा ऋतुराज में, सबको खुशी मनोज।। -- ढोंग-दिखावा हैं सभी, पश्चिम के दिन-वार। रोज बदलते हैं जहाँ, लोगों के दिलदार।। -- |
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ढोंग-दिखावा हैं सभी, पश्चिम के दिन-वार।
जवाब देंहटाएंरोज बदलते हैं जहाँ, लोगों के दिलदार।।
--बहुत सही कहा शास्त्री जी आपने..समसामयिक और मनभावन दोहे..
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसुरभित शब्दों की सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह... Rose Day पर भारतीयता की भावना से सराबोर बेहतरीन दोहों के लिए साधुवाद आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 08 फ़रवरी 2021 को 'पश्चिम के दिन-वार' (चर्चा अंक- 3971) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रोज बदलते हैं जहाँ, लोगों के दिलदार----बहुत बढ़िया शास्त्री जी
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