पेंग बढ़ाकर नभ को छू लें, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। मँहगाई की मार पड़ी है, घी और तेल हुए महँगे, कैसे तलें पकौड़ी अब, पापड़ क्या भूनें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। हरियाली तीजों पर, कैसे लायें चोटी-बिन्दी को, सूखे मौसम में कैसे, अब सजें-सवाँरे सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। आँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा, रस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। |
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रविवार, 26 जुलाई 2009
‘‘झूला झूलें सावन में।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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झूला झूलें सावन में ..पढ़ कर मन कर गया है झूलने का । नाग पंचमी की शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंवाह मयंक जी खूब रंग बिखेरे सावन में।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
जवाब देंहटाएंरस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
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सार्थक चिंता - बहुत अच्छी रचना
बहुत सुंदर रचना .. सचमुच समस्याएं ही समस्याएं हैं इस सावन में !!
जवाब देंहटाएंwaah waah........sawan ka itna manbhavan geet padhkar mazaa aa gaya
जवाब देंहटाएंआँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
जवाब देंहटाएंरस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में
mousam की thandi fuhaar के साथ कितनी sarthak, sachee बात कह दी............... लाजवाब है Shashtri जी
सही फ़रमाया आपने...इस सूखे मौसम में अब कहाँ आनंद आता है सावन में
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह छंद-बद्ध गीत
जवाब देंहटाएंहरियाली तीजों पर, कैसे लायें चोटी-बिन्दी को,
जवाब देंहटाएंसूखे मौसम में कैसे, अब सजें-सवाँरे सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।।
bahut hi sundar bhav.badhai!!!!
शास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंसावन में सामयिक चिंता करता हुआ यह गीत प्रीतिकर लगा. जिन वृक्षों पर सावन में झूला डाला जाता था, वही कटा पाया गया, उफ ! इस सावन का क्या करे कवि ? पेड़ और पर्यावरण की फिक्र रचना को सार्थकता प्रदान करती है. बधाई !
अब तो दाल-रोटी भी नसीब नहीं सावन में.
जवाब देंहटाएंइतना ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने कि झूलने का मन कर रहा है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंरामराम.