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गुरुवार, 5 मार्च 2009
विपत्ति आने पर धैर्य और बुद्धि से काम लेना चाहिए। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
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bilkul sahi kaha aapne...........vipatti ke samay yahi sabse bade sambal aur hathiyar hote hain manushya ke.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहानी ्है जी, विपत्ति में धैर्य से काम लेने वाला ही सफ़ल होता है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत अच्छी कथा.
जवाब देंहटाएंbahut sahi,achhi kahani
जवाब देंहटाएंकमाल कर दिया शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंकथा भी सुना दी और श्लोक का
अर्थ भी स्पष्ट कर दिया।
आपकी कलम की
चतुराई को प्रणाम करता हूँ।
विभुक्षिता किं न करोति पापम्,
जवाब देंहटाएंक्षीणाः जनाः निष्करुणा भवन्ति।
त्वं गच्छ भद्रे प्रियदर्शनाय,
न गंगदत्तः पुनरेति कूपम्।।
संस्कृत के श्लोक के माध्यम से
प्रेरक कहानी बहुत अच्छी लिखी है।
बधाई।
आज ब्लाग पर इस प्रकार के
जवाब देंहटाएंसन्देश देने वाली कहानियाँ
कम ही देखने को मिलतीं है।
आपको अच्छे लेखन के लिए,
मुबारकवाद।
सुन्दर एवं रोचक कथा के लिए
जवाब देंहटाएंबधाई।
मित्रों को इस कहानी से शिक्षा लेकर
जवाब देंहटाएंदुष्टता की आदत त्याग देनी चाहिए।
संस्कृत के साथ हिन्दी भाषा का मिश्रण, अच्छा लगा। प्रेरक कथा के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइस प्रकार की प्रेरक कहानियाँ तो
जवाब देंहटाएंप्रकाशित होनी ही चाहिए।
बधाई......बधाई।
बहुत शिक्षाप्रद कथा है शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंअच्छी उपदेशात्मक कहानी है।
जवाब देंहटाएंअगर गंगदत्त अपनी तरह
अपने सगे-संबंधियों को भी बचा लेता,
तो कुछ और बात होती।
यह कहानी इस कटु सत्य को भी
उजागर करती है कि
कोई कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो,
उसका विवेक
तब ज़्यादा अच्छी तरह से जागता है,
जब उसकी अपनी जान पर
बन आती है या स्वयं
उसके ऊपर मुसीबत आती है।