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बुधवार, 18 मार्च 2009
अमीर वो है जिसका कोई जमीर होता है। (कवि देवदत्त ‘प्रसून’ की एक गजल)
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अमीर वो है जिसका कोई जमीर होता हैं. एक यथार्थवादी बढ़िया गजल है . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअमीर वो है जिसका कोई जमीर होता हैं. एक यथार्थवादी बढ़िया गजल है . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंमुझे यह रचना बहुत पसन्द है।
आपने मेरी रचना प्रकाशित की। धन्यवाद।
आप बधाई के पात्र हैं।
SHER ACHHE HAIN,
जवाब देंहटाएंBHAV ACHHE HAIN,
LEKIN GAZAL MEN MATRAON
KA SANTULAN THIK NAHIN HAI.
प्रसून जी!
जवाब देंहटाएंआप बनबसा से क्या गये,
आपने तो कवि-गोष्ठियों तक में
आना बन्द कर दिया।
आपकी यह रचना सुन्दर है।
कई बार आपके मुख से सुनी है।
आपको ब्लाग पर लाने के लिए
शास्त्री जी का आभारी हूँ।
बहुत लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत खुबसूरत गज़ल है ....आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंआपकी ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं .....
जवाब देंहटाएंभलाई करे और खुद का पता तक ना दे
बस वही तो सच्चा दानवीर होता है
शास्त्रीजी,वर्श्प्रतिपदाकी आपको वधाई,पुनःआज एक रचना ब्लॉग में दाल रहा हूँ
जवाब देंहटाएं