(१)
आभूषण हैं वदन का, रक्खो मूछ सँवार,
बिना मूछ के मर्द का, जीवन है बेकार।
जीवन है बेकार, शिखण्डी जैसा लगता,
मूछदार राणा प्रताप, ही अच्छा दिखता,
कह ‘मंयक’ मूछों वाले, ही थे खरदूषण ,
सत्य वचन है मूछ, मर्द का है आभूषण।
(२)
पाकर मूछें धन्य हैं, वन के राजा शेर,
खग-मृग सारे काँपते, भालू और बटेर।
भालू और बटेर, केसरि नही कहलाते,
भगतसिंह, आजाद मान, जन-जन में पाते।
कह ‘मयंक’ मूछों से रौब जमाओ सब पर,
रावण धन्य हुआ जग में, मूछों को पा कर।
(३)
मूछें बिकती देख कर, हर्षित हुआ ‘मयंक’,
सोचा-मूछों के बिना, चेहरा लगता रंक।
चेहरा लगता रंक, खरीदी तुरन्त हाट से,
ऐंठ-मैठ कर चला, रौब से और ठाठ से।
कह ‘मंयक’ आगे का, मेरा हाल न पूछें,
हुई लड़ाई, मार-पीट में, उखड़ गई थी मूछें।
सही बन पड़ी है मूँछ पुराण जी.
जवाब देंहटाएंबिन मूछों के क्या ? अच्छा चित्रण सर जी । बधाई
जवाब देंहटाएंkya baat hai ........aaj to moonch hi chaa gayi hain.
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा आपने ..मूंछ नहीं तो कूछ नहीं !!!!!!!!
चेहरा लगता रंक, खरीदी तुरन्त हाट से,
जवाब देंहटाएंऐंठ-मैठ कर चला, रौब से और ठाठ से।
कह ‘मंयक’ आगे का, मेरा हाल न पूछें,
हुई लड़ाई, मार-पीट में, उखड़ थी मूछें।
वाकई नत्थूलाल की मूंछों की कहावत अब समझ आई जॊ.:)
रामराम.
मूछ वन्दना, वाकई नया टाॅपिक है।
जवाब देंहटाएंइस पर कलम चलाने के लिए,
शुक्रिया।
शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंमूछों की कुण्डली में
रावण और कुम्भकरण का
तो जिक्र है परन्तु नत्थूलाल
की मूछें तो आप भूल ही गये हैं।
जनाब!
जवाब देंहटाएंजिस समय यह रचनाएँ लिखीं गयी थीं ।
उस समय तो नत्थूलाल पैदा भी नही हुए थे।
मूछों पर पुराने छंद में
जवाब देंहटाएंपहली बार ब्लाग पर
कुछ लिखा देखा।
अच्छा है ।
पुराने छंद अभी भी अच्छे लगते हैं।
जवाब देंहटाएंगिरधर की कुण्डलियों की आपने
याद ताजा कर दी।
धन्यवाद।
आपके ब्लाग पर मूछें
जवाब देंहटाएंदेख कर अच्छा लगा।
बधाई।