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दबाव से कुछ नहीं हो सकता , अच्छा ही हुआ जो आप घर आ गये ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह "प्रदर रोग हुआ है" का संस्मरण श्री प्रकाशवीर शास्त्री जी (संसद सदस्य व आर्यसमाज के प्रकाण्ड प्रखर तेजस्वी विद्वान)की जीवनी का है, जो ४०-५० साल पूर्व से, छपा हुआ उपलब्ध है।
जवाब देंहटाएंआदरणीया बहिन कविता वाक्चनवी जी!
जवाब देंहटाएंआपने परम श्रद्धेय पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी अपनी टिप्पणी में का उल्लेख किया है। पं0 जी तो मुझसे 20 वर्ष सीनियर थे। वह भी गुरूकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर के स्नातक थे। अन्तर यह है कि वे यहाँ के स्नातक थे और मैं यहाँ का भगोड़ा हूँ। उनके जीवन में यह घटना मुझसे 20 वर्ष पूर्व घटित हुई होगी और मेरे साथ यह संयोग उनसे 20 वर्ष बाद हुआ । इसे संयोग ही कहा जा सकता हूँ। आप अपने स्थान पर सही हैं और मैं अपनी जगह।
aapki gurukul yatra ke bare mein jankar achcha laga.
जवाब देंहटाएंek yatra aisi bhi
hum kar gaye
jahan jana nhi tha
chale gaye
jo karna nhi tha
kar gaye
आपकी गुरु कुल यात्रा के बारे में पड कर लगा कि पहले के समय मे भी लॊग गुरू कुल से गोल मारते थे !
जवाब देंहटाएंfont ka size chhota kijiye.
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