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बाबा नागार्जुन का कहना सही है ... अखबार के बीच वाले पन्ने पर ... जिसमें संपादकीय और किसी विषय के विशेषज्ञ के विश्लेषणात्मक आलेख ... दोनो ही छपे होते है ... पढना सबसे अधिक ज्ञानवर्द्धक होता है ... बाकी पन्नों में तो समाचार की रिपोर्टिंग होती है ... जिसे न भी पढा जाए ... तो कहीं न कहीं से मालूम हो ही जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा बाबा ने. अखबार पढो तो मर्म भी पढ ही लो उसका.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सही कहा अखबार ही तो हमें दुनिया से परिचित करवाता है ...अच्छा लगा यह शुक्रिया
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी, ये नायाब मोती चुनकर लाए आप यादों की पोटली से।
जवाब देंहटाएंआगे इंतजार है...
baba ka kehna sahi hai..........akhbar ke poore paise tabhi to vasool hote hain jab kuch gyanvardhak jankari mile.
जवाब देंहटाएंसही बात है कही बाबा ने ...ज्यादातर ऐसे ही होते हैं
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
मयंक जी।
जवाब देंहटाएंआपके संस्मरण बहुत रोचक हैं।
मुझे भी इससे पूरा अखबार पढ़ने की
प्रेरणा मिली है।
धन्यवाद।
शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन पर आपकी श्रंखला का
यह उत्कृष्ट संस्मरण है।
बधाई।
उच्चकोटि के संस्मरण के लिए
जवाब देंहटाएंबधाई।
मयंक जी।
जवाब देंहटाएंसंस्मरण रोज प्रकाशित किया करें।
अच्छा लगता है।
शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंअब तो मेरे बच्चे भी इसको
पढ़ने में रुचि लेने लगे हैं।
बधाई।
हमारे शिक्षक और गुरु भी यही कहा करते थे। समाचार पत्र के संपादकीय से ही तो पूरे समाचार पत्र की विचारधारा, श्रेष्ठता, निष्पक्षता का अनुमान लगता है।
जवाब देंहटाएंमैं तो खबरें कभी कभार ही पढता हूँ. संपादकीय के लिए ही अखबार खरीदता हूँ. एकबार तो अखबारवाले ने कहा की आप कहें तो किसी और के अख़बार से सिर्फ वो पेज निकाल के आपको दे दिया करूंगा, १०-१५ रुपये दे देना. वैसे भी उसे पढता कौन है.
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