सब अंधियारे मिट जायेंगे, आशा का दीप जलाओ तो। भँवरे गुन-गुन कर गायेंगे, गुलशन में फूल खिलाओ तो।। बागों में कोयल बोल रही, मिश्री कानों में घोल रही, हम साज बजाने आयेंगे, तुम अभिनव राग सुनाओ तो। भँवरे गुन-गुन कर गायेंगे, गुलशन में फूल खिलाओ तो।। क्यों नील गगन को ताक रहे, चितवन से क्यों हो झाँक रहे, हम मर कर भी जी जायेंगे, अमृत की बून्द पिलाओ तो। भँवरे गुन-गुन कर गायेंगे, गुलशन में फूल खिलाओ तो।। लहरों से कटते हैं कगार, करते हो किसका इन्तजार, हम चप्पू लेकर आयेंगे, तुम नौका बन कर आओ तो। भँवरे गुन-गुन कर गायेंगे, गुलशन में फूल खिलाओ तो।। |
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शुक्रवार, 3 जुलाई 2009
‘‘आओ तो’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
बागों में कोयल बोल रही,
जवाब देंहटाएंमिश्री कानों में घोल रही,
हम साज बजाने आयेंगे, तुम अभिनव राग सुनाओ तो।
भँवरे गुन-गुन कर गायेंगे, गुलशन में फूल खिलाओ तो।।
बहुत ही सुन्दर मन बाग बाग हो गया ..............प्रकृति सौन्दर्य मे लिप्त कविता .........मन मोर हो गया.......
वाह कविता पढकर दिल बाग बाग हो गया. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हम साज बजाने आयेंगे, तुम अभिनव राग सुनाओ तो
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
मयंक जी आज का गीत तो बहुत ही सुन्दर है बधाई
जवाब देंहटाएंआप की कविता पढ कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सब अंधियारे मिट जायेंगे,
जवाब देंहटाएंआशा का दीप जलाओ तो।
भँवरे गुन-गुन कर गायेंगे,
गुलशन में फूल खिलाओ तो।।
good poem.
congretulation.
waah.............dil khush ho gaya padhkar.
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