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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
भय का भूत (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
नवम्बर का महीना था। मैं और मौसा जी खेत में पानी लगाने के लिए चले गये। पानी लगाते हुए कुछ रात सी हो गयी थी । मौसा जी का खेत सड़क के किनारे पड़ता था, खेत में एक पीपल का पुराना पेड़ भी था । मैने मिट्टी तेल की लालटेन जला ली और पीपल के पेड़ में टाँग दी । उस समय नजीबाबाद में कोई भी अदालत नही थी । अतः लोग बिजनौर रेलगाड़ी से अदालत के काम से जाया करते थे । उस दिन रेलगाड़ी भी कुछ लेट हो गयी थी । अतः लोगों को गाँव लौटते हुए रात के लगभग 10 बज गये थे ।
अगले दिन मैं और मौसा जी मुखिया की चौपाल पर बैठे थे । तभी गाँव के कुंछ लोगों ने अपनी व्यथा सुनानी शुरू कर दी । कहने लगे- रात को हमने पीपल के पेड़ में भूतों की लालटेन जलती देखी थी , खेत में उनके चलने की आवाज भी आ रही थी । हम लोगों ने जब यह नजारा देखा तो भाग खडे हुए और चार मील का रास्ता तय कर दूसरे रास्ते से 11 बजे घर पहुँचे ।
अब तो मेरा हँसते-हँसते बुरा हाल था । मौसा जी भी खूब रस ले-ले कर बात को सुन रहे थे । किसी ने सच ही कहा है कि भय का ही भूत होता है ।
डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
(पूर्व सदस्य-अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखण्ड सरकार)
कैम्प-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर, पिनकोड- 262 308
फोन/फैक्सः 05943-250207, मोबाइल- 09368499921
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:) सच कहा यह भय ही कई तरह की काल्पनिक छवि हमारे अन्दर बना देता है और हम डर जाते हैं
जवाब देंहटाएंमैने ऐसी कितनी कहानिया सुनी हैं.....वास्तव में सुनी सुनायी बातों के आधार पर अपने अंदर के भय से ही हम डरते हैं ।
जवाब देंहटाएं... sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंMAUSA JI BAUT ACHI KAHANI THI AUR KAHANIYAN SUNNNI HAI
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