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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
स्वागत नव-वर्ष
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।
कुछ ने मँहगाई फैलादी, कुछ हैं मँहगाई के मारे ।।
काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है ।
क्या सरोकार उनको इससे क्या नूतन और पुरातन है ।
सर्दी में फटे वसन फटे सारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे।।
जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल ।
जो करते श्रम का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल ।
वाणी में केवल हैं नारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।
नव-वर्ष निरन्तर आता है,सुख के निर्झर अब तक न बहे।
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने ही दारुण-दुख-दर्द सहे ।।
मक्कारों के वारे-न्यारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।
रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं ।
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं ।।
सब स्वप्न हो गये अंगारे, नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।
टूटा तन मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं ।
आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं ।।
अब चमकेंगेें अपने तारे, नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।।
प्रजापति डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
पूर्वसदस्य-उत्तराखण्ड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,देहरादून। कैम्प-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर
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