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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009
अपना चमन बरबाद कर डाला। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)
अपना चमन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।
चहकती थीं कभी,
गुलशन की छोटी-छोटी कलियाँ जब,
महकती थी कभी,
उपवन की छोटी-छोटी गलियाँ जब,
गगन की छाँह में,
शीतल पवन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।
चमकती थी कभी बिजली,
मिरे काँधे पे झुक जाते,
झनकती थी कभी पायल,
तुम्हारे पाँव रुक जाते,
ठिठुर कर डाह में,
अपना सुमन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।
सिसकते हैं अकेले अब,
तुम्ही को याद कर-कर के,
बिलखते हैं अकेले अब,
फकत फरयाद कर-कर के,
अलम की बाँह में,
अपना जनम बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।
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dhanywad sar ! bara pasand aaya aapka yah kalam
जवाब देंहटाएंapna chaman barbad kar
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंआपका गीत बहुत अच्छा है।
झनकती थी कभी पायल,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे पाँव रुक जाते,
ठिठुर कर डाह में,
अपना सुमन बरबाद कर डाला।
वाह..वा...बेहद खूबसूरत रचना...बधाई.....
नीरज
गुलों की चाह में,
जवाब देंहटाएंअपना चमन बरबाद कर डाला।
वफा की राह में,
चैन-औ-अमन बरबाद कर डाला।।
वाह..वा...बेहद खूबसूरत रचना...बधाई.....
बहुत सुन्दर ...! भावपूर्ण ..!
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! सर...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना है यह तो...
सादर बधाई..
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
इस प्रस्तुति की तारीफ़ के लिए जो भी कहूँगा कम ही होगा - इसलिए बस एक शब्द में ही सब कुछ समेटने का प्रयास करता हूँ - शानदार
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