हाथ लेकर जब चले, तुम साथ में,
प्रीत का मौसम, सुहाना हो गया है।
इक नशा सा, जिन्दगी में छा गया,
दर्द-औ-गम, अपना पुराना हो गया है।
जन्म-भर के, स्वप्न पूरे हो गये,
मीत सब अपना, जमाना हो गया है।
दिल के गुलशन में, बहारें छा गयीं,
अब चमन, मेरा ठिकाना हो गया है।
चश्म में इक नूर जैसा, आ गया,
बन्द अब आँसू , बहाना हो गया है।
तार मन-वीणा के, झंकृत हो गये,
सुर में सम्भव, गीत गाना हो गया है।
शास्त्री जी बहुत अच्छी बात कही!
जवाब देंहटाएंप्रीत का मौसम सुहाना हो गया है!
जवाब देंहटाएंक्योंकि प्रियतम्
अब सुमन में बस गए हो तुम !
अब चमन मेरा ठिकाना हो गया है!
क्योंकि प्रियतम्
अब चमन में बस गए हो तुम!
बंद अब आँसू बहाना हो गया है!
क्योंकि प्रियतम्
अब नयन में बस गए हो तुम!
सुर में संभव गीत गाना हो गया है!
क्योंकि प्रियतम्
अब सुरों में बस गए हो तुम!