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शनिवार, 14 फ़रवरी 2009
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
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वाहवा... शास्त्री जी, बढ़िया गीत...
जवाब देंहटाएंbadhai..
दिल के ज़ख्म फिर से तैयार हो गए
जवाब देंहटाएंआप शायरी के सरताज हो गए
समाज में व्याप्त विसंगतियों का अच्छा बखान किया गया है!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा और बढ़िया गीत लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंअनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
.. वाह बहुत अच्छा ,, सचमुच बदल चुका अब सब
कोइ बताये इसे सहेँगे कब तक
एकदम सटीक लिखा है....
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