मम्मी जी ने इसको डाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,
जब झूला पा जाती हूँ।
होम-वर्क पूरा करते ही,
मैं इस पर आ जाती हूँ।
करता है मन को मतवाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
मुझको हँसता देख,
सभी खुश हो जाते हैं।
बाबा-दादी, प्यारे-प्यारे,
नये खिलौने लाते हैं।
आओ झूलो, मुन्नी-माला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
सुन्दर भाव,
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल गीत ।
मयंक जी !
जवाब देंहटाएंलगता है आप बाल गीतों में भी बाजी मार कर ही दम लेंगे। इस बाल गीत के लिए बधाई ।
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंअब तक प्रतिभा को छिपाये क्यों रहे?
अच्छे बाल गीत के लिए शुभकामनायें।
आदरणीय टिप्पणीकारों!
जवाब देंहटाएंबाल-गीत लिखने की प्रेरणा मुझे बाल साहित्यकार रावेंद्रकुमार रवि ने दी है।
मैं इस तुकबन्दी को उनको ही समर्पित कर रहा हूँ।
बाल-गीत मन को भा गया।
जवाब देंहटाएंआशा है
आपकी कलम से और भी बाल-गीत पढ़ने को मिलेंगे।
सुन्दर गीत...बच्चों के लिए. सहेज लिया.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और लाजवाब बाल मन के अनुरुप
जवाब देंहटाएंरचना. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
बड़े भाई मयंकजी,
जवाब देंहटाएंछिपी हुई थी प्रतिभा उर में,
वही प्रकट हो आई है!
यह कविता भी सुंदर भाई,
मेरे मन को भाई है!
यह तो है आशीष आपका,
सिर-माथे पर धरता हूँ!
दिया आपने जो अपनापन,
नमन उसे मैं करता हूँ!
सुन्दर चित्र, सुन्दर झूला और सुन्दर बाल-गीत।
जवाब देंहटाएंमेरी बधाई।
behad sunder
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव,