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गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
भक्ति-भाव से मिलकर बोलो, रघुपति राघव राजा राम।(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)
दीन दुखी के रक्षक गा्ंधी,
तुमको शत्-शत् मेरा प्रणाम।
श्रद्धा-सुमन समर्पित तुमको,
जग में अमर तुम्हारा नाम।।
आत्म-संयमी, व्रतधारी की,
महिमा को हम गाते हैं।
राजनीति-पटु,महा-आत्मा को,
हम शीश नवाते हैं।।
तन-मन में रमे हुए गांधी,
जैसे काशी और काबा हैं।
भारत के जन,गण,मन में,
रचते-बसते गांधी बाबा हैं।।
शस्त्र अहिंसा का लेकर,
तुमने अंग्रेज भगाया था।
शान्ति प्रेम की लाठी से,
भारत आजाद कराया था।।
छुआ-छूत का भूत भगा,
चरखे का चक्र चलाया था।
सत्यमेव जयते का सबको,
पावन पाठ पढ़ाया था।।
आदर और श्रद्धा से लेते,
हम बापू-गांधी का नाम।
भक्ति-भाव से मिलकर बोलो,
रघुपति राघव राजा राम।।
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पूज्य बापू जी को मेरा भी प्रणाम।
जवाब देंहटाएंइस सदाबहार अच्छी रचना के लिए बधाई।
सदाबहार रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंगांधी जी मेरे भी आदर्श हैं।
उन पर एक सुन्दर कविता लिखने के लिए धन्यवाद।
GANDHI JI IS VERY SPECIAL FOR ME ALSO BECAUSE WITHOUT THIS MAN WE COULD NOT ENJOY INDEPENDENCE TODAY
जवाब देंहटाएंबापू का नमन!
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