आवास-विकास, खटीमा (उत्तराखण्ड)
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एक ढलती शाम, मेरी जिन्दगी,
प्यार का उपनाम, मेरी जिन्दगी।
हर किसी से हँस के है मिलती गले-
इसलिए बदनाम, मेरी जिन्दगी।।
तेरी मुहब्बत का हमको, गुजरा वो जमाना याद आया।
रंगीं वो मंजर याद आये, वो शहर पुराना याद आया।।
मिलते थे कहीं दीवानों से, चलते थे कहीं बेगानों से,
उस राह-ए मुहब्बत का ऐ दिल, इक-इक अफसाना याद आया।।
वो भी तो इक जमाना था, तुम पलके बिछाये रहते थे,
हमको तो मुहब्बत का तेरी, हर राज पुराना याद आया।।
मिट जायेंगे हम, मर जायेंगे हम, इस राह-ए मुहब्बत में इक दिन,
उन तेरी फरेबी नजरों का, ‘बदनाम’ फसाना याद आया।।
बदनाम जी।
जवाब देंहटाएंजरा मुझे भी तो उस हसीना का नाम बता दो ।
(आपकी श्रीमती) आशा भटनागर
आदरणीया भाभी जी!
जवाब देंहटाएंबदनाम जी ने आप ही के लिए यह गजल लिखी
है । इनकी ख्वाबो की महबूबा आप ही तो रही है।
nahin nahin iske liye jaanch commirree baithani chahiye, badnaam koi aise hi badnaam hota hai,uske peechhe koi shaitani kaam hota hai.
जवाब देंहटाएंkashama karen bhatnagar ji.
bahut achchi rachna hai .badhai sweekaren.
बहुत ही जानदार लिखा है आपने ..... जैसे
जवाब देंहटाएंतेरी मुहब्बत का हमको, गुजरा वो जमाना याद आया।
रंगीं वो मंजर याद आये, वो शहर पुराना याद आया।।...
पर ये हसीना है कौन .....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
मेरी "आशा", मेरी उम्मीद की दुनिया तुम हो।
जवाब देंहटाएंथी कभी ख्वाब में, रंगीन वो दुनिया तुम हो।
क्या बात है बदनाम साहब,
जवाब देंहटाएंएक तो आपका परिचय बेहतरीन.....
एक ढलती शाम, मेरी जिन्दगी,
प्यार का उपनाम, मेरी जिन्दगी।
हर किसी से हँस के है मिलती गले-
इसलिए बदनाम, मेरी जिन्दगी।।
दूसरा इतनी शिद्दत कि बुलाते ही महबूब हाजिर....
पहला कमेन्ट ही उन्होंने मारा....
वैसे आंटीजी जबरदस्त है... कुछ छुप नहीं सकता उनसे....
बेवजह ही मेहनत मत करना....
एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित शायर को एक नौसिखिए कलमघिस्सू का सलाम पहुँचे !
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