हर साल बरसता था सावन,
अब की बरसात नहीं आयी।
तुम आ जाते तो शायद फिर,
मधुमास सुहाना आ जाता।
हम आस के पंछी वर्षा के,
आने की दुआयें करते हैं।
चूड़ी की खनक, पायल की झनक,
मौसम फिर खुश्नुमा आ जाता।
खुश्क हवाओं के झोंके,
आते हैं तो गुल मुस्काते हैं।
यादों के सूने गुलशन में,
सूखी बरसातें होती हैं।
घिर-घिर के घटायें आती हैं,
और बिन बरसे रूक जाती हैं।
तुम आ जाते ऐसे में कहीं,
सावन का महीना आ जाता।
आने की तुम्हारी चाहते में,
हम आस लगाये रहते हैं।
गुलचीं के लिये फिर गुलशन में,
वीरान बहारें होती हैं।
तुम आ जाते ‘बदनाम’ से फिर,
मिलने का जमाना आ जाता।
अच्छी कविता है!
जवाब देंहटाएंगुलाबी कोंपलें
अच्छी कविता है!
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